स्वतंत्र भारत के झांकी : भाग – 27

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अध्याय – 4 “लोकतांत्रिक क्रांति अउरी राजनितिक उथल-पुथल  – 3”

पहिला गैर कांग्रेसी सरकार, जनता पार्टी के उदय

अभी तक हमनी के पहिला अध्याय ‘राष्ट्र एकीकरण के चुनौती’ के बारे में देखनी जा| एह अध्याय में हमनी के एह बात से अवगत भईनी जा कि कईसे लार्ड माउंटबेटेंन, सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरु अउरी वी.पी. मेनन के टीम पाहिले त्रावनकोर ओकरा बाद जोधपुर, जैसलमेर, जूनागढ़, हैदराबाद अउरी कश्मीर के एकीकरण करे में सफल भईले जा| दूसरा अध्याय ‘देश के भीतर मूलभूत एकीकरण’ में हमनी के देखनीजा कि कईसे सबसे पहले प्रशासनिक एकीकरण भईल, ओकरा बाद आर्थिक एकीकरण, सामाजिक एकीकरण भईल| एकरा अलावां राज्यन के भाषाई एकीकरण अउरी क्षेत्रीयता के खिलाफ एकीकरण प भी चर्चा कईनी जा| ओकरा बाद तीसरा अध्याय ‘भारत के पडोसी देशन से युद्ध’ शुरू भईल जवन भारत के पडोसी देशन के साथे भईल सारा युद्ध भईल, ओकरा बारें में विस्तार से चर्चा भईल| पाहिले भारत-पाकिस्तान 1947 के बात भईल ओकरा बाद 1962 के भारत-चीन युद्ध, फिर पाकिस्तान के साथे भईल 1965, 1971 अउरी 1999 के कारगिल युद्ध के बात भईल| चउथा अध्याय ‘लोकतांत्रिक क्रांति अउरी राजनितिक उथल-पुथल” शुरू हो चुकल बा| एह अध्याय के तीसरा अंक ‘जनता पार्टी के उदय’ के बारे में बात होई|

हमनी के पहिला अंक में आपातकाल के बारे में चर्चा कईनी जा| ओकरा बाद अगिला अंक में जयप्रकाश आन्दोलन के बात भईल| अब एह अंक में बात होई आन्दोलन के प्रतिफल यानी कि पहिला गैर कांग्रेसी सरकारी जनता पार्टी के रूप मिलल| आंदोलन में सारा वर्ग के एगो बढ़िया भागीदारी रहे| आपातकाल के 19 महीना में श्रीमती इंदिरा गाँधी के आपन गलती अउरी लोगन के गुस्सान के एहसास हो गईल रहे| 18 जनवरी 1977 के इहाँ के अचानके मार्च में लोकसभा चुनाव करवावे के ऐलान कर देनी| देश में आपातकाल के बाद 1977 में जवन चुनाव भईल उ अपना-आप में अलग क़िस्म के रहे| लोगन के सामने इ सवाल कम रहे कि के अच्छा बा आ के बुरा बा| बल्कि इ सवाल ज़्यादा रहे कि लोगन के आपातकाल के बारे में का राय बा? ओकरा प्रति लोग जवना हिसाब से वोट कईलस, ओह से साफ़ ज़ाहिर रहे कि लोग आपातकाल के ख़ारिज कर चुकल रहे| देश के जनता आपातकाल के दौरान भईल शोषण के विरोध में इंदिरा गाँधी के ख़िलाफ़ मतदान कईलस| इहाँ तक कि इंदिरो गांधी अपना गढ़ रायबरेली चुनाव हार गईल रही अउरी  संजयो गांधी चुनाव हार चुकल रहन|

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जयप्रकाश नारायण जी के स्लोगन रहे “सिंहासन खाली करीं, जनता आ रहल बिया|” 1977 चुनाव परिणाम के बाद सिंहासन खाली हो गईल अउरी जनता सत्ता में आ भी गईल| संसद में कांग्रेस के सदस्यन के संख्या 350 से घट के 153 प सिमट गईल अउरी 30 सालन के बाद पहिला बेरी केंद्र में कवनो ग़ैर कांग्रेसी सरकार के गठन भईल| कांग्रेस के उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा अउरी दिल्ली में एको सीट ना मिलल| सात राज्यन के 234 सीटन में से इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाला कांग्रेस के मात्र 2 सीट ही मिल पाइल रहे| दक्षिण भारत के स्थिति इंदिरा गाँधी के अनुकूल रहे जवन एक तरह से राहत रहे| ओहिजा आपातकाल में शोषण भी ना भईल रहे| इहे कांग्रेस खातिर एगो सुखद समाचार रहे| दक्षिण भारत के राज्यन के आपातकाल के दौरान लागू भईल बीस सूत्रीय कार्यक्रमन से काफ़ी फायदा भी मिलल रहे| आश्चर्य के बात इ बा कि दक्षिण भारत में 1971 के चुनाव के तुलना में ओहिजा 1977 में 22 गो सीट ज्यादा मिलल रहे जवना के परिणामस्वरूप आंकड़ा 70 से बढ़के 92 हो गईल रहे| कहीं न कहीं दक्षिण भारत के तरफ से आइल जनादेश कांग्रेस खातिर कुछ हद तक एगो राहत के बात रहे| लेकिन कुल मिलाके अगर देश के स्तर प देखल जाव त बेशक कांग्रेस के प्रदर्शन 1977 में काफी निराशजनक रहे|

इहाँ तक कि चुनावी परिणाम के मुख्य पैमाना भी आपातकाल ही बनल| पूरा देश में जेकर भी संबंध आपातकाल से रहे, लगभग उ सब लोग चुनाव में असफल हो गईल रहन जा| चुनाव में बहुत बरियार हार के सामना कांग्रेसी नेता लोग के करे के परल रहे| साधारतः एगो निष्कर्ष निकालल जा सकत बा कि आमतौर प उहे लोग चुनाव जीतल जे आपातकाल के पुरजोर विरोध कईले रहे अउरी जेकरा साथे शोषण भईल रहे| कुल मिलाके कहल जा सकत बा कि चुनावी परिणाम एकदम सीसा लेखा साफ़ रहे| आपातकाल के इ प्रतिफल ही रहे| नेता लोग भी उहे रहे जे ढेर-ढेर दिन तक जेल काट चुकल रहे| अब एगो अहम् सवाल इ उठत बा कि आखिर इंदिरा गाँधी अतना जल्दी चुनाव करावे के फैसला काहे लेली? चुकी चुनाव करावावे के निर्णय भी त उनकरे नु रहे| चुनाव करावे के पक्ष में संजय गाँधी त बिलकुल ना रहन| लेकिन फिर भी इंदिरा गाँधी चुनाव करवावे के फैसला लेली|

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इंदिरा गाँधी के एह फैसला के आपन अलग नजरिया रहे| उहाँ के चुनाव एहि से जल्दी करवईनी ताकि विपक्षी दलन के इकट्ठा होखे के मौका मत मिलो| एह से उहाँ के उम्मीद रहे कि जनता कांग्रेस के वोट कर दी काहे कि उ लोग जतना तक पहुँच ना पाई| एकरा बावजूद लोग बहुत तेजी के साथ इकट्ठा भईले अउरी जनता पार्टी के माथे ताज पहिना देले| स्वतंत्र भारत में पहिला हाली कवनो गैर कांग्रेसी सरकार बनल| इ सरकार कई गो विचारधारा अउरी छोट-बड़ दलन के जोड़के बनल रहे| मूल रूप से एह पार्टी के आधार रहे आपातकाल के विरोध कईल अउरी तमाम अलग-अलग विचारधारान के लाइन से ऊपर उठकर एक साथे इकट्ठा होखल| चुनाव परिणाम के बाद कुछ दिनन तक पार्टी के नेता अउरी भावी प्रधानमंत्री के लेके विवाद चलत रहल| हालांकि जयप्रकाश नारायण के कद जनता पार्टी में बहुत ऊँच रहे| लेकिन उनकर ना त स्वास्थ्य ठीक रहे अउरी नाही प्रत्यक्ष रूप में राजनीती में आवे के चाह रहे| इंदिरा गाँधी के 1977 के चुनाव में बरियार झटका मिलल रहे अउरी उनका में जनता मटियामेट कर देले रहे|

बाबु जगजीवन राम, चौधरी चरण सिंह अउरी मोरारजी देसाई के नाम सामने रेस में आवे शुरू हो गईल रहे| प्रधानमंत्री पद के लेके तीनों नेता दृढ़ संकल्प रहन| तीनों लोग पहिला गैर कांग्रेसी सरकार के प्रधानमंत्री बनल चाहत रहन जा| इ फैसला जयप्रकाश नारायण अउरी आचार्य कृपलानी के हाथ में रहे| चौधरी चरण सिंह के त खुद पार्टी में ही पर्याप्त समर्थन ना रहे| अब बारी आइल बाबु जगजीवन राम के| बाबु जगजीवन राम त खुद पहिला बेरी इमरजेंसी के प्रस्ताव संसद में पेश कईले रही त उहाँ के प्रधानमंत्री बने के संभावना भी कम हो गईल| एगो संभावना जयप्रकाश नारायण जी के बनल त उहाँ के त खुद पाहिले रही कि कुर्सी खातिर उहाँ के राजनीति ना करब| एह से अंतिम विकल्प मोरारजी देसाई ही बचले| एहिजा जयप्रकाश नारायण के उल्लेख कईल प्रासंगिक होइ| उहाँ के जीवन के श्रेष्ठतम काल से गुज़रत रही| उहाँ के आवाज अउरी नेतृत्व जनता पार्टी खातिर चमत्कारी रहे| उहाँ के ‘किंग मेकर’ के स्थिति प्राप्त कर चुकल रही| इ स्थिति कभी महात्मा गाँधी के मिलल रहे| जयप्रकाश नारायण जी के सहमति से 23 मार्च 1977  के मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनावल गईल|

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81 साल के मोरारजी देसाई पहिला गैरकांग्रेसी सरकार के प्रधानमंत्री पद के सुशोभित कईनी| प्रधानमंत्री पद के दूसरा उम्मीदवार चौधरी चरण सिंह के गृह मंत्रालय अउरी बाबु जगजीवन राम के रक्षा मंत्रालय के जिम्मेदारी देल गईल| जनसंघ के कोटा से अटल बिहारी बाजपाई के विदेश मंत्री अउरी लालकृष्ण अडवाणी के सुचना अउरी प्रसारण मंत्रालय के जिम्मेदारी देल गईल| इंदिरा गाँधी के गढ़ रायबरेली में हरावे वाला राजनारायण के स्वास्थ्य मंत्री बनावल गईल| मोरारजी देसाई के नेता बनावे के फैसला बहुत आसान ना रहे काहे कि पार्टी में बाकी के लोगन के विचार अलग अलग रहे| साझा कार्यक्रम जवन आयोजित कईल गईल रहे ओह में निर्णय लेवे में काफी देर लागल काहे कि पार्टी में कई किसिम के लोग रहे जेकर बुनियादी विचारधारा अलग-अलग रहे| एह उलझन के बाद एह प्रकार के साझा कार्यक्रम करावे प सहमती बनल उहे एगो बड बात रहे| इ एगो बड साझा कार्यक्रम रहे| एकरा में स्वतंत्रता आंदोलन से जुडल लोग भी शामिल रहन| एह से इ कार्यक्रम अपना आप में ख़ास भी रहे|

जनतो के इ उम्मीद रहे कि परिवर्तन से सुधार जरूर आई अउरी आर्थिक स्थिति भी पाहिले से बेहतर होई| लेकिन देश के जनता ओह समय इ आकलन करे में असफल रहे कि जनता पार्टी में जतना दल के लोग बा उ लोग भिन्न नीतियन अउरी विचारन से पोषित रहे| एह कारण से  सैद्धांतिक रूप से ओह लोग में आतंरिक मतभेद उत्पन्न हो गईल रहे| एह मतभेद के चलते जनता पार्टी के विघटन शुरू होखे लागल रहे| एकरा बारे में आगे के कहानी अगिला अंक में…..

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