मातृभाषा पहचान, स्वाभिमान अउरी एकता के प्रतिक (भोजपुरी)

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हमरा साहित्य के ढेर ना त ज्ञान बा अउरी नाही प्रदर्शित करे के शैली कविता सुनिना, मुशैरा के मिश्र भी सुनत निक लागेला ना गावे आवे अउरी नाही ओह तरह के पंक्ति लिखे, हम मूल रूप से राजनितिक अउरी सामाजिक लेख लिखल ज्यादा पसंद करीला, लेकिन काल (15 मई) नवीन जी के वाल प मातृभाषा के लेके एगो बातचीत देखनी तबे हमार मन उमड़ गईल कि थाती देल जरूरी बा ढेर दिन हो गईल. विकास का हवे ?

पाहिले एही में लोग ढेर अझुराईल बा, विकास सिर्फ आर्थिक विकास ना होला बल्कि आर्थिक विकास एगो कॉम्पोनेन्ट हवे. हमरा ज्ञान के मुताबिक सामाजिक, सांस्कृतिक, वैवहारिक, नैतिक विकास एह सभ के यूनियन होला विकास, अउरी भाषाई विकास जवन बा एह सभ कॉम्पोनेन्ट के इंटरसेक्शन होला जवन कि सभ कॉम्पोनेन्ट में कॉमन रहेला. ढेर लोग के देखले बानी जिरह बहस करत भाषा के लेके कि फलनवा रुआ हर बात में भाषा के ना घुसावे के चाही. फिर एगो प्रश्न उठल लाजमी बा कि बिना भाषा के कवन चीज भईल बा ?

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इतिहास हमनी के सिखावेला अउरी तजुर्बा भी देला कि अगर कवनो देश के बर्बाद करेके होखे तs सबसे पाहिले वोहिजा के मातृभाषा नष्ट कs दी. जर्मनी, चीन, फ्रांस व जापान के लोग एह हकीकत से निमने से वाकिफ रहे लोग. एही से उ लोग आपन मातृभाषा के मरे ना देहलस. मातृभाषा के मतलब खाली शब्द के खेला ना हवे बल्कि हमनी के पहचान स्वाभिमान अउरी एकता के प्रतिक हवे. कोई भी इंसान आपन सभ्यता अउरी संस्कृति के ताख प रखके सफल नइखे हो सकत.

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फिर भी रुआ एह बात में संदेह बा एकर मतलब की सफलता शब्द से अच्छा से वाकिफ नइखे रुआ. ढेर लोग के लागेला कि हिंदी ही सही बा बोले आ भा लिखे में ठीक बा, उ हिंदी तबे तक बाचल रही जब तक राउर मात्रभाषा बाचल रही. रुआ बोलल छोड़ देब एक पीढ़ी बाद उहो(हिंदी) छुट जाई, एह से हिंदी बचावे खातिर मात्रभाषा बचावल बहूत जरूरी बा. कवनो कॉलेज में आज कल जर्मन, फ्रेंच, जापानी आज खाली एह मकसद से ना पढ़ावल जल कि लईका के ओहिजा जाए के होखी बल्कि भाषाई विविधता से अवगत करावल जाला, इ एही से संभव बा काहे कि उ लोग नष्ट ना होखे देलस वैश्विक स्तर प.

एगो बात कहले रहन भाई जी कि भोजपुरिया भाई बहिन के विकास भोजपुरी के विकास से पाहिले जरूरी बा. एकरा के कहला ‘टॉप टू डाउन एप्रोच’ जवन हर जगह असफल बा दोसरा शब्द में कही त एकरा के लोग करप्शन के प्रक्रिया में गिनिला एह एप्रोच के, जबकी एप्रोच डाउन टू टॉप होखे के चाही. भाषाई विकास से मानवीय विकास कईल ज्यादा आसान बा लेकिन मानवीय विकास से भाषाई विकास कठिन बा, कहे के मतब इ कि गेहू से बिस्कुट बनाईम कि बिस्कुट से गेहू ? बिल्कुल सही बात बा भोजपुरी भाषा-भाषी के बीचे जबले उपराष्ट्रवाद( खान पान, बोल चाल, निवेश, रोजगार, नौकरी, स्थानीय भाषा) ना आई तबले विकास ना हो सकेला चाहे क्षेत्र के बात होखो चाहे क्षेत्र वासी के.

विश्वास नइखे त तमिलनाडु के जीडीपी के मूल्यांकन कर सकीना जहाँ शायदे कही हिंदी के शब्द लाउकेला. फिर भी काहे ओहिजा के लोग अच्छा पोजीशन प बा अउर राज्यन के अपेक्षाकृत काहे कि ओहिजा उपराष्ट्रवाद काफी हद तक हावी बा. हम ऊपर लिखल सफलता के मतलब समझावल चाहत बानी जवन हम सोचिला, रुआ पत्रकारिता के उदाहरण ले लिही कई गो पत्रकार देश में होइहे जेकर तनख्वाह रविश कुमार से ज्यादा होखी लेकिन उहे बात के सामने रखे जवन तरीका होखेला उनकर उ एकदम जमीनी स्तर के होला आपन प्राकृतिक अंदाज में सामने राखिला जवन कि सबसे यूनिक बा आज के तारीख में.

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आपन लिखे के, बोले के और वार्तालाप करेके ढंग बा उहे उनकर सफलता हवे भले तनख्वाह औरन से कम काहे ना होखो. इंटरव्यू के दौरान भाषा में सरलता अउरी बाकी के हावभाव मातृभाषा से ही आवेला. मानतानी कि अंग्रेजी में बातचीत बहूत आसानी से लोग क लिही लेकिन रेफरेंस खातिर शब्दकोष कहाँ से आई ? उ ओहिजे ले आई जहाँ से रुआ आइल बानी.

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