अध्याय – 2 “देश के भीतर मूलभूत एकीकरण -7”
क्षेत्रीयता के खिलाफ एकीकरण
अभी तक दूसरा अध्याय ‘देश के भीतर मूलभूत एकीकरण’ में हमनी के देखनीजा कि कईसे सबसे पहले प्रशासनिक एकीकरण भईल, ओकरा बाद आर्थिक एकीकरण, सामाजिक एकीकरण भईल| सामाजिक एकीकरण में हमनी के खासकर आदिवासी समूह के बात कईनी जा| सीरीज के दूसरा अध्याय के पिछला अंक में राज्यंन के भाषाई पहचान अउरी एकीकरण के बारे में चर्चा भईल रहे| एह अंक में हमनी के क्षेत्रीयता के उगत समस्या अउरी एकरा खिलाफ एकीकरण के बात कईल जाई|
1950 में बहुत लोग ‘क्षेत्रीयता’(Regionalism) के भारत के एकता अउरी अखंडता के खतरा मानत रहे| आजादी के शुरूआती दौर में इ चीज मुख्य मुद्दा के रूप में रहे लेकिन ओकरा बाद से धीरे धीरे कम महत्वपूर्ण होत चल गईल| सबसे पाहिले इ समझे के होई कि इ ह का? कवना के क्षेत्रीयता कहाई आ कवना के ना? अगर कोई आदमी अपना क्षेत्र प गर्व करत बा त का उ क्षेत्रीयता कहाई? जवाब मिली बिल्कुल ना कहाई| ठीक असही अगर कवनो व्यक्ति अपना राज्य, भाषा अउरी ओहिजा से जुडल संस्कृति के प्रति जागरूक बा त उ क्षेत्रवाद के कांसेप्ट में ना गिनाला|
अगर कवनो आदमी अलग राज्य बनावे के मांग भी करत बा त उ ‘क्षेत्रीयता’ के दायरा में ना आई| एकरा के तब ले ना जोडल जाई जब तक से ओह समूह के आदमिन के भीतरी देश के अन्य राज्यन के प्रति नफरत नइखे पैदा हो जात| उदाहरन के तौर प तमिलनाडु के लिहल जा सकत बा| ओह लोग के इतिहास के क्षेत्रीयता’ के दायरा में एह से देखल गईल रहे काहे कि बाकी के राज्यन के प्रति नफ़रत वाली चीज लउके लागल रहे|
भारत के एकता अउरी विभिन्नता के बीचे संधि राष्ट्रवाद करवावेला| लेकिन विभिन्नता भी बचल रहे रहे के चाही ओकरा के लोगन के मन अपना क्षेत्र के प्रति प्रेम-भाव अउरी श्रधा सुनिश्चित करेला| इहाँ तक कि गाँधी जी कहले बाड़े कि ‘As the basis of my pride as an Indian, I must have pride in myself as a Gujarati.’ (हमरा एगो भारतीय शान के आधार प हमरा एगो गुजराती के तौर पर भी गर्व करे के चाही)| इहाँ तक जतना भी आजादी के आन्दोलन मुक्कमल भईल ओह सब में क्षेत्र के आइडेंटिटी के बहुत बड योगदान रहल बा| इ समस्या आज भी हमनी के समाज में जिन्दा बा|
लोग एह से बहुत दूर बा कि ‘क्षेत्रीयता’ ह का? उदाहरन के रूप में भोजपुरिया समाज के ले सकिला| कुछ लोग के एह बात के अनुभूति होला कि अगर उ भोजपुरी में लिखिहे, बोलिहे आ पढ़िहे त उनका में क्षेत्रीयता के बोध होई| जबकी अइसन नइखे| देश के आत्मा ‘विविधता’ के बचावे खातिर लोगन के आपन भाषा अउरी संस्कृति के प्रति जागरूक होही के परी| लेकिन ध्यान इ रहे कि सेवा-भाव सकारात्मक विचार से होखे| विचार के बदलन ही ‘विविधता के प्रति जागरूकता’ से ‘क्षेत्रीयता’ में बदल देला|
आजादी के समय विविधता आप अहम भूमिका निभवले रहे| एकरा नकारात्मक पहलू ‘क्षेत्रीयता’ आजादी के दू-तीन साल बाद 1950 में सघन रूप ले लेलस| इ खासकर तब भईल जब तमिलनाडु के राजनीती में DMK आपन धाक जमावे के शुरुआत कईलस| 1950 से लेके 1960 तक एकर बरियार प्रकोप रहल| कुछ लोग पंजाब के मांग के भी ‘क्षेत्रीयता’ के रूप में देखेला जबकी अईसन नइखे| जईसन कि हम उपरे लिखले बानी कि अलग राज्य के मांग कईल क्षेत्रीयता के दायरा में अईबे ना करे जब तक ओकर भावना दूसरा राज्यन के प्रति गलत ना होखे| एह से पंजाब वाला मामला ‘Communalism’ में आवेला ना कि ‘Regionalism’ में|
भाषा के आधार प राज्यन के भाषाई पुनर्गठन अउरी देश के ऑफिसियल भाषा से उठल विवाद दक्षिण भारत में ‘क्षेत्रीयता’ के मुख्य कारन रहल| एकरा अलावां राजनितिक पार्टीन जईसे DMK पार्टी आदीन के राजनितिक महत्वाकांक्षा भी एगो महत्वपूर्ण करान रहल| अभी भी बहुत सारा चीजन के लेके राज्यन के बीच विवाद रहेला| कर्नाटक अउरी तमिलनाडु में कावेरी नदी के पानी के लेके विवाद काफी पुराना रहल बा| एकरा अलावां पंजाब अउरी हरियाणा के बीच भी पानी के लेके विवाद रहल बा, लेकिन इ ओतना हिंसक अउरी नफ़रत से परिपूर्ण नइखे रहल| सिचाई और बाँध के निर्माण भी एकर कारण रहल बा|
कुछ इतिहासकार लोग ‘क्षेत्रीयता’ के कारण आर्थिक असमानता के भी मानेला| आजादी के समय कुछ क्षेत्र ज्यादा पीछे रह गईल रहे| कुछ महत्वपूर्ण शहर जईसे बोम्बे, मद्रास अउरी कोलकता में ही औद्योगिक विकास हो पाइल रहे| उदहारण के रूप में 1948 में खाली बोम्बे अउरी पश्चिम बंगाल पूरा देश के लगभग 65% से ज्यादा औद्योगिक आउटपुट देत रहे| बाकी के 35% प्रतिशत पूरा देश के आउटपुट से आवत रहे| औपनिवेशिक शासन के दौरान सबसे ज्यादा क्षति खेती के पहुचावल गईल रहे| खासकर पूर्वी भारत सबसे ज्यादा एकरा से प्रभावित रहे| उत्तर आ दक्षिण भारत पूर्वी भारत के अपेक्षा कम प्रभावित रहे|
स्वतंत्र भारत के पहला नेहरु सरकार के समक्ष एगो चुनौती इहो रहे कि आर्थिक विकास के पैमाना प क्षेत्रीय असंतुलन के कम कईल जाव| केंद्र सरकार जवन भी कमजोर राज्य रहे ओह पर विशेष ध्यान देवे लागल रहे| आर्थिक असमानता के कम करे खातिर गरीब राज्यन के वित्तीय सुविधा के स्थानांतर करे लागल रहे ताकी ‘क्षेत्रीयता’ जईसन समस्या के खिलाफ लड़ सको| राजनितिक पार्टी भी एही सब बिंदु के उपयोग करके आपन राजनीती चमकावत रहे| प्लानिंग कमीशन बढ़िया प्लान के तहत ओह राज्यन के ज्यादा फण्ड उपलब्ध करवावे लागल रहे जवन बहुत ज्यादा गरीब रहीसन|
धीरे धीरे समय के साथे सरकार पब्लिक इन्वेस्टमेंट प बल देवे लागल| परिणामस्वरूप सस्ता दाम प बीज, खाद, मशीन मिले लागल| सरकार द्वारा सिचाई प्रोजेक्ट, रोड-रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट से काफी मदद मिलल जवन राज्यन के बीच आर्थिक असमानता के कम कईलस| ओकरा बाद 1969 में बैंकन के राष्ट्रीकरण भईल| अउरी बैंक के ब्रांचन के विस्तार के बात भईल| ब्रांच के विस्तार के बात पिछड़ा इलाकान खातिर खासतौर प कईल गईल रहे| गरीबी हटावे खातिर खाद्य सुरक्षा अउरी ग्रामीण विकास के केंद्र में लिहल गईल| तमाम तरह के सरकारी निति के इजाद भईल जवन सब्सिडी के वकालत कईलस|
साठ के दशक में ‘ग्रीन रेवोलुशन’ पर बल देवल गईल जवन कि औपनिवेशिक काल में भईल खेती में क्षति के दोबारा ट्रैक प ला सको| ग्रीन रेवोलुशन के तहत हाइब्रिड बीज अउरी खेती के नया तकनीक के प्रचार-प्रसार कईल गईल जवना से किसान ज्यादा से ज्यादा फसल उपजा सको अउरी खराब आर्थिक स्तिथि के बेहतर बना सको| देश में खाद्य सुरक्षा भी ओह घरी संकट में रहे| लेकिन ग्रीन रेवोलुशन आईला के बाद से निश्चित रूप से पिछड़ा राज्यन के मदद मिलल| एह से सबसे ज्यादा फायदा में रहे वाला राज्य आँध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, पूर्वी उत्तरप्रदेश अउरी बिहार आदि राज्य रहे| एह में सबसे ज्यादा उ राज्य रहे जहाँ ‘क्षेत्रीयता’ के समस्या गंभीर रहे|
एकरा नब्बे के दशक में आइल आर्थिक संकट से जवन हल LPG (Liberalisation, Privatisation and Globalisation) के रूप में निकलल उ ना सिर्फ देश के आर्थिक स्तिथि सुधरलस बल्कि साइड प्रोडक्ट के रूप में ‘क्षेत्रीयता’ कम करे में भी मदद कईलस| एह दौर के बाद से गरीब राज्यन से unskilled मजदूर ओह शहरन दने पलायन करे लगले जहाँ पर उद्योग रही सन| एह सब से ओह लोग के कहीं न कहीं आर्थिक स्तिथि बदलल| खराब आर्थिक स्तिथि के वजह जवन आदमी ‘नकसलवाद’ अउरी ‘क्षेत्रीयता’ दने प्रोत्साहित होत रहे उ पाहिले के अपेक्षाकृत बढ़िया जीवन पाके खुश रहे अउरी अपना काम में व्यस्त रहे| अगर दक्षिण भारत के अपवाद में रखल जाव त इहे कारण बा कि ज्यादातर राजनीती क्षेत्र के नाम प ना बल्कि दोसरा मुद्दान प लड़ल गईल|
अगर राज्यन के आर्थिक स्तिथि बेहतर ना होईत त शायद उत्तर भारत में भी ‘क्षेत्रीयता’ के प्रतिबिम्ब देखे के मिल जाईत| आजादी के बाद से आज तक के स्तिथि देखल जाव त ‘क्षेत्रीयता’ के समस्या निरंतर कम होत आइल बा| तमिलनाडु में एगो समय रहे जब हिंदी से सख्त नफरत रहे| लेकिन समय के साथ परिवर्तन के वजह से ओहिजा बढ़िया हॉस्पिटल अउरी कॉलेज आदि के निर्माण भईल| एह से उत्तर भारत के लोगन के ओहिजा आवा जाहि बढ़ल| आज स्तिथि अइसन देखे के मिलेला कि ओहिजा के काफी लोग हिंदी बोलेला आ उत्तर भारत से आवे वाला लोगन के शौख से स्वीकार करेला|
एह से होला का कि एह सब आदमिन के ओह क्षेत्र में गईला से ओहिजा के स्थानीय लोगन के प्रत्यक्ष आ अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेला अउरी एथिकल रूप से जाए वाला लोगन के प्रति शुक्रगुजार के रूप में देखेला| एह सब ‘क्षेत्रीयता’ वाला कांसेप्ट कहीं न कहीं फीका पडबे करेला| एह तरह से से भारत एह क्षेत्रीयता के खिलाफ लड़ के पूरा भारत के एक सूत्र में बांधे में कामयाब भईल|
एह सीरीज के अगिला कड़ी में अगिला अध्याय-3 शुरू होई जवना में आजादी के बाद भारत पडोसी मुल्कन से जतना युद्ध लड़ल बा ओह प चर्चा होई|
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