स्वतंत्र भारत के झांकी : भाग – 32

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अध्याय – 4 “लोकतांत्रिक क्रांति अउरी राजनितिक उथल-पुथल  – 8”

आर्थिक क्रांति के दौर –

भूमिका….

अभी तक हमनी के पहिला अध्याय ‘राष्ट्र एकीकरण के चुनौती’ के बारे में देखनी जा| एह अध्याय में हमनी के एह बात से अवगत भईनी जा कि कईसे लार्ड माउंटबेटेंन, सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरु अउरी वी.पी. मेनन के टीम पाहिले त्रावनकोर ओकरा बाद जोधपुर, जैसलमेर, जूनागढ़, हैदराबाद अउरी कश्मीर के एकीकरण करे में सफल भईले जा| दूसरा अध्याय ‘देश के भीतर मूलभूत एकीकरण’ में हमनी के देखनीजा कि कईसे सबसे पहले प्रशासनिक एकीकरण भईल, ओकरा बाद आर्थिक एकीकरण, सामाजिक एकीकरण भईल| एकरा अलावां राज्यन के भाषाई एकीकरण अउरी क्षेत्रीयता के खिलाफ एकीकरण प भी चर्चा कईनी जा| ओकरा बाद तीसरा अध्याय ‘भारत के पडोसी देशन से युद्ध’ शुरू भईल जवन भारत के पडोसी देशन के साथे भईल सारा युद्ध भईल, ओकरा बारें में विस्तार से चर्चा भईल| पहिले भारत-पाकिस्तान 1947 के बात भईल ओकरा बाद 1962 के भारत-चीन युद्ध, फिर पाकिस्तान के साथे भईल 1965, 1971 अउरी 1999 के कारगिल युद्ध के बात भईल|

चउथा अध्याय ‘लोकतांत्रिक क्रांति अउरी राजनितिक उथल-पुथल” शुरू हो चुकल बा| एह अध्याय के पहिला अंक में आपातकाल के शुरुआत के बारे में चर्चा भईल| ओकरा बाद दूसरा अंक में जयप्रकाश नारायण आन्दोलन के बारे में बृहत रूप से चर्चा भईल| ओकर अगिला तीसरा अंक में जनता पार्टी के उदय के बारें में चर्चा भईल रहे| एकर चउथा अंक में जनता पार्टी के विघटन अउरी कांग्रेस के वापसी के बारे में चर्चा हो चुकल बा| एह अध्याय के पांचवां अंक में लिट्टे के उदय अउरी राजीव गाँधी के कईसे हत्या भईल एकरा बारे में भईल रहे| पिछला अंक में आर्थिक क्रांति के दौर के बारें में कुछ चर्चा भईल रहे बाक़ी के एह अंक में पूरा हो जाई|

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पिछला अंक में हमनी के देखनी जा कि कईसे भारत के आर्थिक स्तिथि अंग्रेजन के जमाना से पहिले से लेके औपनिवेशिक काल होते आजाद भारत में बदलल| 1951 से 1980 तक कईसे भारतीय अर्थव्यवस्था गिरल| ओकरा पीछे का कारण रहे हमनी के जाने के कोशिश कईनी जा| एकरा अलावां भारत के आर्थिक संकट के बीज 1985 में ही बोआ गईल रहे| 1991 में कईसे बैलेंस ऑफ़ पेमेंट संकट आइल हमनी के देखनी जा| एकरा अलावां ज़ूम करके इहों देखनी जा कि एकरा पीछे का कारण रहे? एह अंक में बात होई कि ओह आर्थिक संकट से भारत कईसे निकलल| आईएमऍफ़ (इंटरनेशनल मोनेटरी फण्ड) से सहायता के गुहार लगावल गईल| एह संस्था के भूमिका भी इहे ह कि जब भी कवनो देश आर्थिक संकट से जुझत बा त ओकरा के सस्ता दर प लोन देवो आ आर्थिक निति में सुझाव देव| हालाँकि भारत के सख्त नियमन के लेके इ संस्था राजीव गाँधी के सुझाव दे चुकल रहे लेकिन राजीव सरकार नजरंदाज कर देले रहे| परिणाम जवन भईल उ हम सब के सामने बा|

आईएमऍफ़ सहायता करे से पाहिले एगो शर्त रखलस| ओह घरी इराक अउरी कुवैत के लड़ाई चलत रहे| इराक आ कुवैत दुनो तेल के बड़ निर्यातक देश रहे| तेल के दाम बढ़त चलल चल जात रहे| एह से पूरा अमेरिका के साथे-साथे विश्व के अर्थव्यवस्था प प्रभाव पड़त रहे| आईएमऍफ़ में अमेरिका के वोट प्रतिशत 80% से भी ज्यादा रहे| अमेरिका आपन हित खोजत भारत के समक्ष इ शर्त रखलस कि भारत के अमेरिकी फाइटर जेट के तेल भरे खातिर मुंबई लैंड करे के इजाजत देवो| जबकी भारत के रिश्ता अरब देशन से सदियन से बढ़िया रहे| जाने अनजाने में भारत ओह युद्ध में अमेरिका के सहयोगी बन गईल| डॉलर के लालच में अमेरिका के सहायता कईलस लेकिन जवन पईसा ओह अंतराष्ट्रीय संस्था से मिलल उ नाकाफी रहे| तब के RBI(रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया) के गवर्नर एस वेंकिटरमणन रहन| ओह घरी चंद्रशेखर के सरकार रहे| तब मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के आर्थिक सलाहकार रहन| गवर्नर साहेब मनमोहन सिंह से मुलाकात करके एगो सुझाव देले कि भारत आपन सैकड़ो टन सोना गिरवी रखके आपन तात्कालिक राहत से छुटकारा पा सकत बा| इ सुनते मनमोहन सिंह गवर्नर साहेब के प्रधानमंत्री से मुलाकात करवईले|

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प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के सामने भी उहे प्रस्ताव रखले कि इंटरनेशनल बैंक में सोना गिरवी रखके तात्कालिक राहत पावे खातिर डॉलर मिल जाई| प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सोना गिरवी रख के डॉलर लेवे के अनुमति दे दिहले| राजीव गाँधी से लेके तब के फाइनेंस फिनिस्टर यशवंत सिन्हा भी एह फैसला प सहमती जतावल| जब सोना गिरवी रखे के फाइल यशवंत सिन्हा के भीरी आइल तब चंद्रशेखर सरकार गीर चुकल रहे| 20000 किलोग्राम सोना स्विट्ज़रलैंड के बैंक में रखाइल रहे| एकरा बदला में मिलल डॉलर नाकाफी रहे| मूलतः इ उहे सोना रहे जवना के कस्टम विभाग स्मगलिंग के दौरान जब्त कईले रहे आ SBI(स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया) में रखाइल रहे| एकरा बाद फिर 47000 किलोग्राम सोना बैंक ऑफ़ जापान अउरी बैंक ऑफ़ इंग्लैंड में गिरवी रखे के फैलसा कईल गईल| एकरा से लगभग 1100 करोड़ रूपए भारत को मिले| दुसरका बार वाला गिरवी चुपा-चुपी रखाइल रहे अउरी इ वाला RBI के खाजाना से रखल गईल रहे| लेकिन ढेर दिन तक सीक्रेट ना रह पाइल|

लेकिन तब तक प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से नर्शिम्भा राव के सरकार बनल तय हो गईल रहे| लेकिन सवाल अभी भी इ रहे कि फाइनेंस मिनिस्टर के बनी? पी.सी.एलेग्जेंडर अउरी नर्शिम्भा राव सबसे पाहिले एह काम खातिर RBI के पूर्व गवर्नर अउरी इकोनॉमिस्ट आई.जी. पटेल के लगे गईले लोग| लेकिन उहाँ के फाइनेंस मिनिस्टर बने से मना कर देनी| पी.सी.एलेग्जेंडर के सलाह प नर्शिम्भा राव मनमोहन सिंह के पास फाइनेंस मिनिस्टर बने के प्रस्ताव रखले| ओह घरी मनमोहन सिंह यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) के चेयरमैन रहन| भोरे-भोरे नर्शिम्भा राव उनका के फोन करके सीधे फाइनेंस मिनिस्टर के पास खातिर ऑफिस बोला लेले| एही से कहल जाला कि मनमोहन सिंह अचानके फाइनेंस मिनिस्टर अउरी प्रधानमंत्री बनल रहले| काहे कि उहाँ के प्रधानमंत्री बने के एक साँझ पहिले भी पता ना रहे कि उ प्रधानमंत्री बनिहे| उहाँ के फाइनेंस मिनिस्टर के रूप में पहिला बजट पेश कईनी| साथे-साथे उदारीकरण के लेके सामने फ्रंटफूट पर भी आ गईनी| बजट पेश करे तक आईएमऍफ़ के दबाव में दू बे रुपया के वैल्यू डॉलर के सामने गिरावल जा चुकल रहे| ओह घरी एक्सचेंज रेट सरकार तय करत रहे|

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एकरा पाहिले बहुत ज्यादा बाधा रहे| कवन कंपनी कतना उत्पादन करी अउरी ओह उत्पादित वस्तु के कीमत का कोई सब सरकार ही तय करत रहे| विदेशी कंपनियन प बहुत ज्यादा दबाव रहे| भारत में पईसा लगावल बेहद ही कठिन रहे| सरकार के खुद के PSUs बहुत रहे| सरकार धीरे-धीरे प्राइवेट कंपनी आदि के जोड़े लागल रहे| सरकार के वर्क लोड धीरे-धीरे कम होत चलल चल जात रहे| पार्टी के भीतरे आ बहरी खूब हंगामा होत रहे लेकिन सुरक्षाकवच लेखा नर्शिम्भा राव मनमोहन सिंह के स्वतंत्र रूप से काम करे में मदद कईले रहले| नर्शिम्भा राव खुद उद्योग मंत्रालय अपना लगे रखले रहन| धीरे-धीरे लाइसेंस राज के ख़त्म करे खातिर पूरा तईयारी शुरू भईल| भारत के आर्थिक संकट से बाहर लावे के क्रम में आपन पिछला आर्थिक नीतियन से अलग होके निजीकरण के दिशा में बढे के फैसला भईल| धीरे-धीरे नायका आर्थिक नीतियन के एक के बाद एक घोषणा शुरू हो गईल| देश के बाजार के दरवाजा दुनिया खातिर दरवाजा खोल दिआइल| आर्थिक सुधार के वजह से इन्वेस्टमेंट शुरू भईल अउरी भारत में धीरे-धीरे डॉलर के आगमन शुरू होखे लागल रहे|

नायका आर्थिक नीतियन के मुख्य उद्देश्य इहे कि वैश्वीकरण के क्षेत्र में भारतीय अर्थव्यवस्था चमको अउरी निखरो| दूसरा मुद्रास्फीति के दर के नीचे लावल जाव अउरी भुगतान में असंतुलन के दूर कईल जाव| तीसरा इ कि नयका निति उच्च आर्थिक विकास दर दने ले जाई अउरी पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडारन के निर्माण करी| एह से आर्थिक स्थिरीकरण हासिल होई अउरी अनावश्यक प्रतिबंधन से मुक्ति मिली| पहिले निजी क्षेत्रन खातिर बहुत ज्यादा स्पेस ना रहत रहे| ओकरा खातिर प्रवेशद्वार खोल देवल गईल| सार्वजनिक क्षेत्रन के भूमिका पाहिले खाली चार गो गिन के उद्योग तक ही सीमित रहे लेकिन बाकी के सब उद्योगन के भी निजी क्षेत्रन खातिर खोल देवल गईल| एकरा अलावां विदेश नीतिन के भी उदारीकरण कईल गईल| विदेशी निवेशक लोगन के भारत के कंपनियन में निवेश करे के अनुमति देवल गइल| विदेशी नितिन के अलावां तकनीकी क्षेत्रन में भी उदारीकरण भईल| विदेशी कंपनियन के साथे प्रौद्योगिकी समझौतान प भी हस्ताक्षर करे खातिर भारतीय कंपनियन के अनुमति देवल गईल|

विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) के स्थापना कईल गईल| एह बोर्ड के बढ़ावा देवे अउरी भारत में विदेशी निवेश लावे खातिर स्थापित कईल गईल रहे| लघु उद्योगन के स्थापना कईल एकरे कार्यक्षेत्र में आवत रहे| मूल रूप से नयका निति के तीन गो प्रमुख घटक रहे| पहिला उदारीकरण, दूसरा निजीकरण अउरी तीसरा वैश्वीकरण| उदारीकरण के सीधा मतलब रहे कि सरकार के दबाव कम रही| व्यवस्था उदार होई| कुछ एक के छोड़ के लाइसेंस सिस्टम से मुक्ति दिआवल जाव| व्यावसायिक विकास अउरी विस्तार में सरकार के हस्तक्षेप ना होई| सरकार अब इ तय ना करी कि कंपनी कतना सामान बनाई आ कवना दाम प बेचीं| सामान के कीमत तय करे के स्वतंत्रता कंपनी के मिले लागल| लेकिन एकरा बाद भी तीन गो क्षेत्र अईसन रहे जहाँ लाइसेंस ओकरा बाद भी जरूरी राखल गईल रहे| पहिला परिवहन अउरी रेलवे, दूसरा परमाणु खानिजन के खनन अउरी तीसरा परमाणु उर्जा| लोकहित अउरी सुरक्षा नजरिया से नायका आर्थिक निति के बाद भी इ तीन क्षेत्रन में लाइसेंस के जरूरत एक्सेप्शन में राखल गईल रहे|

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दूसरा घटक बा निजीकरण| सार्वजनिक क्षेत्र, यानी, निजी क्षेत्र खातिर सार्वजनिक क्षेत्र के कंपनीयन के विनिवेश (Disinvestment)| एगो बोर्ड के गठन भईल जवन नुकसान पीड़ित सार्वजनिक क्षेत्र के कमपनीयन में मौजूद बीमार इकाइयन के दोबारा जिन्दा करे के काम कईलस| धीरे-धीरे सरकार कंपनी के स्वामित्व निजीनिजी क्षेत्र के मालिकन के बचाए लागल| पाहिले सार्वजानिक क्षेत्र खातिर कुछ आरक्षित रहत रहे जहाँ कवनो निजी कंपनी के घुसल मनाई रहे| लेकिन निजीकरण के बाद इ प्रतिबन्ध हटल| एह निति के तहत कव गो सार्वजानिक क्षेत्रं के उपक्रमण के निजी क्षेत्रन के हाथे बेच देवल गईल रहे| मालिकाना हक़ धीरे-धीरे स्थानांतरित करे शुरू हो गईल रहे| एकर मुख्य कारण रहे कि सार्वजनिक क्षेत्र के कमपनी (PSUs) घाटा में चलत रहीसन| एह कंपनियन के प्रबंधन स्वतंत्र रूप से निर्णय ले पावे में सक्षम ना रहन| इहे कारण रहे कि उत्पादन क्षमता उम्मीद से कम होत रहे| कुलमिलाके प्रतिस्पर्धा अउरी गुणवत्ता बढ़ावे खातिर सार्वजनिक क्षेत्रन के उपक्रमण के निजीकरण कईल गईल| एकरा खैर शेयर के बिक्री, PSU में विनिवेश अउरी सार्वजानिक क्षेत्रं के न्यूनीकरण भईल|

एकर तीसरा घटक रहे वैश्वीकरण| एकर सीधा-सीधा मतलब रहे भारत के दुनिया के तमाम देशन के साथे जोड़ल| 91 से पाहिले निर्यात अउरी आयात दुनो शुल्क लेवल जात रहे| टैरिफ संरचना भी बहुत जटिल रहे| विदेशी निवेश कईल अतना आसान ना रहे| जवना के उपरे चर्चा कईले बानी उ सब एही घटक के माध्यम से नियंत्रित भईल| निर्यात शुल्क के खात्मा कर देवल गईल| दोसरा देश में सामान बेचे जाए से पाहिले सरकार के शुल्क देवे के परत रहे| एह से होत का रहे कि अंतिम मूल्य अउरी बढ़ जात रहे| अंतराष्ट्रीय बाजार के प्रतिश्पर्धा में भारत के माल पछुआ जात रहे| एह से इ शुल्कवे हटा देल गईल| एह से भईल का कि भारत के माल के डिमांड विदेशन में बढ़ल अउरी डॉलर के आगमन शुरू हो गईल| दीर्घकालीन व्यापारिक निति बनल| एकरा खातिर विदेशी कंपनियन खातिर बहुत नियंत्रण हटा देवल गईल रहे| बाजार खोल देवल गईल रहे| मुद्रा के आंशिक परिवर्तन भईल| एकर माने इ कि भारतीय मुद्रा के बाक़ी के देश के मुद्रा में परिवर्तन करे में आसानी हो गईल| विदेशी निवेशक लोगन के भी एकर फायदा मिलल अउरी भारतीय मुद्रा चमके लागल|

कुलमिलाके प्रतिफल इ भईल कि दुनिया एगो वैश्विक गाँव बन गईल| भारत ओह गाँव के एगो घर बनल जवन बाक़ी के समाज से भी सरोकार रखे लागल रहे| आहिस्ते-आहिस्ते भारत के अर्थव्यवस्था लाइन प आवे लागल रहे|

 

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