अध्याय – 2 “देश के भीतर मूलभूत एकीकरण -5”
राज्यन के भाषाई एकीकरण-‘अ’
अभी तक दूसरा अध्याय ‘देश के भीतर मूलभूत एकीकरण’ में हमनी के देखनीजा कि कईसे सबसे पहले प्रशासनिक एकीकरण भईल, ओकरा बाद आर्थिक एकीकरण, सामाजिक एकीकरण भईल| सामाजिक एकीकरण में हमनी के खासकर आदिवासी समूह के बात कईनी जा| सीरीज के दूसरा अध्याय के अगिला अंक में हमनी के राज्यंन के भाषाई पहचान अउरी एकीकरण के बारे में चर्चा कईल जाई|
आजादी के ठीक बाद भाषा के आधार प राज्यंन के पुनर्गठन खातिर बात सामने आइल जवन राष्ट्रीय एकता अउरी समेकन के सुनिश्चित कर सके| लगभग अंग्रेजन के भारत प 100 साल राज कईला के बाद अचानक मिलल आजादी के वजह से राज्यंन के सीमा बिना बढ़िया से सारा बिन्दुन के आकलन कईले हड़बड़ी में पार दिहल गईल रहे| भाषाई अउरी सांस्कृतिक आकर्षण प कवनो विशेष चिंता भी व्यक्त ना कईल गईल रहे| चुकी हमनी के एह बात से अवगत बानी जा कि भाषा से समाज के संस्कृति अउरी रितिरिवाज से बहुत गहरा सम्बन्ध रहल बा|
वास्तविक लोकतंत्र के परिकल्पना तबे कईल जा सकत बा जब ओहिजा के प्रशासनिक व्यवस्था अउरी राजनीती ओहिजे के मात्रभाषा में होखे| चुकी कवनो जगह के स्थानीय भाषा में ओहिजा के समस्या के पूरा बढ़िया तरह से ऊपर चाहुपावल अउरी उपरे से निचे निति के चाहुपावल आसान हो जाला| मातृभाषा में पढाई-लिखाई, प्रशासन, न्यायिक क्रिया तबे संभव बा जब भाषाई आधार प राज्यन के सीमा सुनिश्चित कईल जाव|
इहे कारण रहल बा कि आजादी से पाहिले ‘राष्ट्रिय आन्दोलन’ खासकर 1919 के बाद जनता के ध्रुवीकरण भाषाई आधार पर ही भईल| कांग्रेस राजनितिक लामबंद करे खातिर मातृभाषा के केंद्र में रखले रहे| एकरा खातिर 1921 में संसोधन करके जतना भी क्षेत्रीय शाखा रही सन सबके भाषाई आधार प पुनर्गठन कईल गईल| तब से कांग्रेस हमेशा से एह बात के कहत आवत रहे अउरी वादा करत आवत रहे कि राज्यन के सीमा के रेखा भाषाई आधार पर ही दोबारा खिचल जाई|
इहाँ तक कि महात्मा गाँधी के हत्या होखे के कुछ दिन पाहिले महात्मा गाँधी खुद एह प आपन विचार रख गईल रहले| गांधीजी के भी मानना रहे कि प्रांतन के भाषाई आधार प राज्यंन में तब्दील करे के चाही| कुल मिला के एह बात के मान के चलल जात रहे कि देश के आजाद भईला के बाद राज्यंन के सीमा भाषाई आधार प ही तय कईल जाई| लेकिन आजादी के बाद राष्ट्रिय नेतृत्व के सुर बदल गईल रहे| एह विषय प आजाद भारत के नेता लोगन के भीतर बिल्कुल विचार पैदा हो चुकल रहे|
आजाद भारत में एगो अलग विचार पैदा होखे के भी कारण रहे| हमनी के पहिला अध्याय में भी देखनी जा कि राजा रजवाड़ा के राज्यंन के भारत में एकीकरण कईल कतना मुश्किल काम रहे| सब कुछ अइसन ना रहे जईसन आजादी के पाहिले रहे| भारत-पाकिस्तान के विभाजन बहुत सारा प्रशासनिक, आर्थिक अउरी राजनितिक समस्या पैदा कर चुकल रहे| सबसे बड बात आजादी तुरंत लड़ाई के बाद मिलला के वजह से आर्थिक अउरी क़ानूनी व्यवस्था देश में संकट में रहे| कश्मीर के समस्या के हल आजादी के बादो ना निकल पावल रहे|
धर्म के आधार प विभाजन एगो हिंसक रूप ले चुकल रहे| देश के व्यवस्था तहस नहस हो चुकल रहे| एह से देश के नेता लोगन के लागत रहे कि ओह समय के सबसे प्राथमिक काम इहे बा देश के एकीकरण अउरी समेकन प बल देवल जाव| लेकिन जवाहर लाल नेहरु ओकरा बादो एह बात के आश्वासन देले रहले की जईसे देश संकट से निकल जाई अउरी सबकुछ सही हो जाई त भाषाई आधार प राज्यन के पुनर्गठन के जवन वादा कांग्रेस कईले रहे उ पूरा होई| एकरा खातिर कुछ साल इन्तजार करे खातिर आवाहन भी कईले रहन|
ओकरा बाद भी प्रश्न ख़त्म ना हो गईल रहे| जनता के बीचे एकर मांग जिन्दा रहे| 1948 में जाके भारत के पुनर्गठन के मांग संविधान सभा में कईल गईल| एकरा खातिर एगो समिति के गठन कईल गईल जवना के नाम रहे ‘लिंगविस्टिक प्रोविंसेस कमीशन’| एह समिति के जिम्मेदारी देल गईल रहे कि भाषाई आधार प देश के पुनर्गठन करे के बारे में जांच पड़ताल करके जानकारी अउरी सलाह देवे| इ समिति जस्टिस एस.के.धर के अध्यक्षता में जांच पड़ताल कईलस| जाँच पड़ताल कईला के बाद दिसम्बर 1948 में एह निष्कर्ष प पहुचल कि देश के एकता के लिहाज से अभी राज्यन के बटवारा भाषाई आधार प कईल उचित नइखे| एह से संविधान सभा अभी निर्णय ना ले पवलस|
लेकिन लोगन के जेहन में इ सवाल अभियो जिन्दा रहे| खासकर दक्षिण भारत के लोग एह बात के लेके बहुत ज्यादा चिंतित रहे| एह से राजनितिक रूप से इ मुद्दा जिन्दा रहे| बढ़त गरमाहट के ध्यान में राखी के जवाहर लाल नेहरु एगो पासा फेकलन अउरी कांग्रेस के तरफ से एगो अइसन समिति (JVP) के गठन कईले जवना के खुद सदस्य भईले| एह समिति में खुद जवाहर लाल नेहरु, उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल अउरी पट्टाभि सितरामइया जईसन लोग शामिल रहे|
एही तीनो लोगन के नाम प एह समिति के नाम JVP(जवाहरलाल नेहरु, वल्लभभाई पटेल अउरी पट्टाभि सितरामइया) रखाइल| जवाहर लाल नेहरु के इ समिति भी ठीक एस.के.धर समिति के सामानांतर ही रिपोर्ट पेश कईलस| जवना में एकबे फिर एह बात के कहल गईल कि राष्ट्रिय एकता के नजरिया से भाषाई आधार प मान्यता अभी देल उचित ना होई| रिपोर्ट देत समय आंध्र के मांग करे वालू दक्षिण भारत के बरियार नेता टी. प्रकाशन के चिठ्ठी लिखके शांति के अपील कईले अउरी साथे-साथे कुछ साल तक इन्तजार करे के कहले|
चुकी जवाहर लाल नेहरु के सामने सबसे बड दिक्कत इ रहे कि अगर भाषा के नाम प एको राज्य के मांग के मान लिहल जाई त देश में न जाने कतना मांग उठे लागी| उनकर मानना रहे कि भाषा के आधार प राज्यन के बटवारा देश विभाजन जईसन मुश्किल पैदा कर सकेला| यह स्तिथि से उ भयभीत रहन| एही से कुछ इतिहासकार लोगन के मानना रहे कि नेहरु जी के विचार एकदम बदल चुकल रहे| अलग राज्यन के मांग अउरी उग्र होत चलल जात रहे|
JVP रिपोर्ट के ख़ास बात इ रहे कि भाषाई आधार प राज्यन के विभाजन के मांग के दस साल तक टाले के बात कईल गईल रहे| एह रिपोर्ट में भी तेलगु लोगन के मांग के जायज ठहरावल गईल रहे| जवाहर लाल नेहरु संविधान सभा में भी एह बात उठा चुकल रहन| लेकिन आन्ध्र के साथे सबसे बड दिक्कत इ रहे कि उ लोग मद्रास(वर्तमान में चेन्नई) के आपन राज्य के राजधानी के रूप में मांग करत रहे| इ मांग भौगोलिक अउरी भाषाई दुनो आधार प अनैतिक रहे|
एही से जवाहर लाल नेहरु एह रिपोर्ट में एह बात के कहले रहन कि अगर आन्ध्र मद्रास के राजधानी बनावे के सपना छोड़ देता त तमिलनाडु अउरी आँध्रप्रदेश के गठन कईल जा सकत बा| उ समय अइसन समय रहे कि अगर तनिको गलत भईल त देश गृहयुद्ध से गुजरे के परित| तेलगु लोगन के मांग रखे वाला आन्ध्र के लोकप्रिय नेता टी. प्रकाशम एह रिपोर्ट के चलते कांग्रेस पार्टी छोड़ के किसान मजदुर प्रजापार्टी में शामिल हो गईले| उनकर कहना रहे कि बिना मद्रास के आध्र के कल्पना कईसे कईल जा सकेला| जबकी हर एंगल से इनकार इ जिद अनैतिक रहे|
एह सीरीज “स्वतंत्र भारत के झांकी” के दूसरा अध्याय ‘देश के भीतर मूल भूत एकीकरण’ के अगिला कड़ी में एही विषय ‘राज्यन के भाषाई पहचान के एकीकरण’ में ही आगे अउर सारा बिन्दुन प चर्चा कईल जाई…….
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