अध्याय – 2 “देश के भीतर मूलभूत एकीकरण -३”
आदिवासिन के एकीकरण-‘अ’
अभी तक ले हमनी के पहिला अध्याय में देखनी जा कि कईसे लार्ड माउंटबेटेंन, सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरु अउरी वी.पी. मेनन के टीम राष्ट्र के भौगोलिक एकीकरण खातिर चुनौतिन के सामना करके सफल भईले जा| ओकरा बाद देश के भीतरी मूलभूत एकीकरण के जरूरत पडल| एह अध्याय के पिछला कड़ी में समझनिजा कि कईसे प्रशासनिक अउरी आर्थिक एकीकरण भईल| देश के भीतर अभी बहुत चीज के एकीकरण बाकी रह गईल रहे| एह अंक में हमनी के इ समझे के कोशिश कईल जाई कि आजादी के तुरंत बाद देश के आदिवासी जनजातिन के एकीकरण कईसे भईल| एह सामाजिक एकीकरण के सामने कवन कवन चुनौती रहीसन| आदिवासिन के मुख्य धारा में लावल कवनो आसान काम ना रहे| चुकी आदिवासी लोगन के भाषा से लेके सांस्कृतिक पग-पग बदलत रहेला| एह से कवनो कॉमन फार्मूला से एह प विजय ना पावल जा सकत रहे|
1971 के जनगड़ना के हिसाब से भारत में लगभग 400 से ऊपर आदिवासी जनजाती बा| एह लोग के जनसख्या लगभग चार करोड़ के आस पास बा| भारत के कुल जनसख्या के लगभग सात प्रतिशत के हिस्सेदारी में बा| इ समूह भारत के विभिन्न हिस्सा जईसे मध्यप्रदेश, बिहार, ओडिसा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान के अलावां भारत के उत्तरपूर्वी हिस्सा में फैलल बा| अगर उत्तरपूर्व के छोड़ दिहल जाव त बाक़ी हर जगह इ समाज अल्पसंख्यक में बा| भारत के विभिन्न हिस्सा में औपनिवेशिक काल के समय बहुत उग्र बदलाव कईल गईल रहे| ओह समाज के सांस्कृतिक अस्मिता के भीतरी दखल देवे के कोशिश कईल गईल रहे|
अंग्रेज प्रशासन के समय आदिवासी समाज में बाजारवाद के बढ़ावा देवे के कोशिश कईल गईल रहे ताकी आदिवासिन के क्षमता के पूरा-पूरा उपयोग आ शोषण कईल जा सको| अग्रेज प्रशासन के धन्नासेठ, व्यापारी अउरी बिचौलिया लोग ब्याज प पईसा देस आ ना चुका पावला के एवज में या त ओह लोग जमीन हथिया लेत रहन या फिर बंधुआ मजदूर होखे के बेबस कर देत रहन| कुल मिला के कहल जा सकत बा कि सांस्कृतिक बदलाव ओह लोग के शारीरिक अउरी सामाजिक गुलाम बना देले रहे|
इहे कारन रहे जवना के वजह से अंग्रेज बिहार (वर्तमान में खासकर झारखण्ड) अउरी उड़ीसा से आदिवासी लोगन के असम अउरी उत्तरपूर्वी राज्य में स्थानांतरित करके ले गईल रहन जा| ओहिजा आदिवासी लोगन के चाय बगान में काफी शोषण होत रहे| जबकी आदिवासी लोगन के शैली इ रहे कि उ लोग जंगल प पूरा तरह से निर्भर रहत रहे लोग| आपना खातिर खाना, खाना पकावे खातिर इंधन, पशु अउरी मवेशी खातिर आहार अउरी हेंडीक्राफ्ट खातिर कच्चा माल सब से सब जंगल से लावत रहे लोग|
एगो स्वतंत्र जीवन जियत रहे लोग| औपनिवेशिक शासन के वजह से आदिवासी लोगन के जंगल के प्रति संबंध में भी बदलाव आइल रहे| अंग्रेज लोग के अईला के बाद आदिवासी लोगन के हर क्षेत्र में विपरीत बदलाव भईल जवना से आदिवासी लोग नाखुस रहत रहे| अइसना में आदिवासी लोगन के अन्दर स्वतंत्र भारत में विश्वास के परिकाष्ठा पैदा कईल कवनो आसान काम ना रहे| आदिवासी लोगन के मन में एह बात के आशंका जरूर रहे कि एकर का गारंटी बा कि अंग्रेज के गईला के बाद स्वतंत्र भारत में ओकर आपन वजूद मिली|
आजादी के लगभग 69 साल बाद एह आशंका के महसूस कईल जा सकत बा| तब ले आज तक आपन पहचान खातिर आदिवासी समूह तरसत बा| गुजरात के मूल आदिवासी, भील आदिवासी गुजरात के भीतरे एगो आपन गुजरात के खोजेला| लगभग हर जगह आदिवासिन के इहे दशा बा चाहे अंडमानीज आदिवासी के बात करीं चाहे बिरहोर, मुंडा, राभा, डूंगरी, बासवा, मनकडिया आ लोधा आदिवासी के| एह सब के कारण उहे रहल बा जवन अंग्रेजन के समय रहे| एकरा खातिर एगो तय कईल गईल प्रक्रिया बा| साहूकार पाहिले आदिवासी के लोन दिही ताकी ब्याज के घनचक्कर में फसो|
जब फस जाए अउरी पूरा ब्याज देवे के स्तिथि में ना होखे त ओकरा एवज में ओकर जमीन हड़प लिहल जाव| एकरा अलावां जंगल से उत्पादित वस्तुन पर भी प्रतिबन्ध लगा दिहल जाला| जंगल के अधिकारी अउरी पुलिस अधिकारी के शोषण हमेशा असमानता के एगो मोट रेखा खिचेला| उ जमीन जवन एगो जंगल ह जहाँ से नानाप्रकार के वस्तुन के उत्पादन होला| ओही जंगल आ जमीन के लड़ाई खातिर एगो गरमदल आज समाज में लउकेला जवना ले नक्सली के रूप में जानल जाला|
स्वतंत्र भारत के पहिला सरकार लगे सबसे बड चुनौती रहे कि आदिवासिन लोगन के कईसे विश्वास दिवावल जाव कि उ लोग भारत के ही हिस्सा ह| आजादी के बाद आदिवासी लोगन के सन्दर्भ में दू गो पक्ष बनल| पहिला इ कि आदिवासी लोगन के छोड़ दी जईसन बा ओसही रहे दिआव| बाहरी दुनिया से अछूता छोड़ दिआव| दूसरा पक्ष इ रहे कि आदिवासी लोगन के अपना धारा में मिला लिहल जाव| एकरे पीछे तर्क दिआइल रहे कि आदिवासी लोगन के पीछे छोडल ठीक बा होई| संघे लेके चलही के पड़ी|
ओह घरी के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु दुनो पक्ष के मना कर देले| उनकर तर्क इ रहे कि पहिला पक्ष जवान बा ज्यों के त्यों छोड़े वाला उ आदिवासी लोगन के बेईज्जत करे वाला बात बा| आजादी के बाद आदिवासी लोगन के आइसोलेशन में राखल ठीक चीज नइखे| लोकतंत्र एकर गवाही ना देला| दूसरा पक्ष के खिलाफ में तर्क इ रहे अगर हमनी के आदिवासी लोगन के अपना धारा में मिलावे खातिर फ़ोर्स करत बानी जा उ बहुत चीज पीछे छोड़ दिही| आदिवासी लोगन में सामाजिक अउरी सांस्कृतिक अस्मिता पीछे छुटत चल जाई|
अब सवाल उठत बा कि ना दाहिने ना बावा त कवन राह पकडल जाव? जवाहर लाल नेहरु के पक्ष ओह निति में रहे जवन कि आदिवासी जनजातिन के भारतीय समाज में एकीकरण खातिर अग्रसर रहो| देखे में लागत बा कि पहिलका निति के सामानांतर बा लेकिन वास्तव में अईसन नइखे| जवाहर लाल नेहरु के कहनाम रहे कि आदिवासी समाज एह देश के अविभाज्य भाग बनो| आपन पहचान अउरी संस्कृति के अपना स्तर प बनवले रखे अउरी आपना अनुसार आपन समाज में रहो| जवाहर लाल नेहरु के सूत्र के मूल रूप से दु गो भाग रहे| पहिला मूल बात इ रहे कि आदिवासी समाज विकास करो|
दूसरा मूल अउरी महत्वपूर्ण बात इ रहे कि विकास अपना खाका आ अपना तरीका से करो| ओह लोग के तरीका के बीचे कोई भी हस्तक्षेप नइखे कर सकत| कुल मिला के कहल जा सकत बा कि आदिवासी जनजातीन लोगन के एकीकरण खातिर जवाहर लाल नेहरु के सिधांत काफी स्पष्ट रहे कि विकास होखे लेकिन ओह लोग के अपना तौर-तरीका के मुताबिक ही होखे| उनकर कहनाम इ रहे कि जरूरी नइखे कि विकास करे के एके रास्ता होखे| इहो जरूरी नइखे कि गैर आदिवासि लोगन द्वारा उपयोग कईल गईल विकास के रास्ता ही एकमात्र रास्ता होखे|
अब समस्या इ रहे कि एह प्रक्रिया के मुक्कमल कईसे कईल जाव? जवाहर लाल नेहरु आदिवासी लोगन खातिर सामाजिक अउरी आर्थिक विकास के माध्यम के रूप में देखले| खासतौर प शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार अउरी खेतीबारी के क्षेत्र प सबसे ज्यादा जोर दिहल गईल| एकरा सन्दर्भ में सरकारी निति के अंतर्गत कुछ दिशा निर्देश दिहल गईल| पहिला, आदिवासी लोग के अपना प्रतिभा से खिचल रेखा प विकास के खाका तईयार करे के चाही| बहरी से कवनो प्रकार के हस्तक्षेप ना होई|
एह बात के समझे के परी कि आदिवासी लोग भी एह देश अउरी समाज के बनावे में बराबर के भागिदार रहल बा| दूसरा बात इ कि आदिवासी लोगन के जंगल अउरी जमीन के इज्जत करे के पड़ी| कवनो प्रकार के बाहरी आदमी खातिर सख्त मना रही| बाजार के अर्थव्यवस्था आदिवासी क्षेत्र में बहुत समझ-बुझ के आ पूरा देख-रेख में लागू कईल जाई| तीसरा इ कि आदिवासी समाज में बोलल जाए वाला भाषा के प्रति एगो सम्मान देवे के चाही अउरी ओह लोग के बोले खातिर प्रेरित करे के चाही| कवनो प्रकार के भेदभाव ना होखे के चाही|
चउथा, प्रशासनिक नजरिया से महत्वपूर्ण रहे कि आदिवासी इलाका में जे भी लोग काम करी ओही लोगन के बीच से चुनल जाई जवना से उ समाज आपन बात स्पष्टता अउरी बेबाकी से रख सको| इहाँ तक कि आदिवासी लोगन में नेतृत्व भी ओही समाज से होखे के चाही| जतना कम से कम हो सके ओह क्षेत्र में गैरआदिवासी कर्मचारी या ऑफिसर काम करिहे| एह से होई का कि ओहिजा के आम जनता में एगो विश्वास पैदा होई कि ओह समाज के आदमी आपन प्रतिनिधित्व खुद करत बा| ओही समाज के लोग कर्मचारी बा एह से जवन प्रतिबिम्ब अंग्रेजन के समय बनल रहे उ तनी फीका पड़ी आ आदिवासी लोगन के मन में भारत के प्रति एगो विश्वास के दीपक जली|
एकरा नरम निति(सॉफ्ट पालिसी) कहाला, जवना के भावुकता अउरी सद्भावना के माध्यम से मुक्कमल कईल जाला| पांचवा, लक्ष्य इ रहे के चाही कि आदिवासी लोगन के विकास ओही लोग के तरीका अउरी संस्कृति से करे के बा| प्रशासन के ओवर एक्सरसाइज ना होखे के चाही| कुल मिला के कहल जा सकत बा कि आदिवासिन के लेके नेहरु जी के जवन सिधांत रहे उ बिल्कुल ही अनोखा अउरी दमदार रहे| एह सब बिंदु से एगो बात पता चलत बा कि जतना भी कारन रहीसन अंग्रेजन के समय, ओह सब प पूरा काम करके बढ़िया से विश्लेषण करके अइसन हल तईयार कईल रहे|
सरकारी निति के एगो आकार देवे खातिर शुरुआत में संविधान में भी सुनिश्चित कईल गईल रहे| आर्टिकल 46 में एह बात के व्याख्यान कईल गईल रहे कि राज्य अपना विकास खातिर आदिवासी समूह के लोगन के सावधानी से शिक्षा अउरी आर्थिक पहलु के विश्लेषण कईला बादे कवनो निर्णय लेवो| एकरा अलावां आदिवासी समूह के सामाजिक अन्याय अउरी शोषण से बचावे खातिर भी जिम्मेदारी राज्य सरकार के हाथे सौपल गईल|
इहाँ तक कि ओह राज्य के गवर्नर जहाँ आदिवासी समूह रहेला, उनका के हक़ देवल गईल कि केंद्र अउरी राज्य स्तर प बने वाला कानून में बदलाव कर सके जवना से आदिवासी लोगन के हित के रक्षा कईल जा सको| जवना से, अपना हिसाब से कानून में बदलाव करके आदिवासी जमीन के रक्षा कईल जा सको अउरी साहूकारन से बचावल जा सको| राजनितिक हक़ खातिर संविधान में जगह देल गईल जवना से ओह अनुपात से विधानसभा आपन प्रतिनिधित्व कर सको| इहाँ तक कि प्रशासनिक सेवा में भी ST(Scheduled Tribes) के रूप में मौका देवे के पहल कईल गईल|
विधायिका अउरी कार्यपालिका के स्तर प बहुत सारा निर्णय लेवल जा चुकल रहे जवना से आदिवासी लोगन के हित के रक्षा कईल जा सको| केंद्र अउरी राज्य सरकार बहुत सारा विशेष प्रकार के सेवा के प्रावधान करे लागल रहे| अर्थव्यवस्था के नजरिया से ग्रामीण उद्योग जईसन चीज भी आपन स्थान लेवे लागल रहे| इहाँ तक कि जवाहर लाल नेहरु के प्रथम पंचवर्षीय योजना में बहुत इज्जत मिलल रहे| सैवधानिक अधिकार अउरी केंद्र आ राज्य सरकार से समर्थन मिलला के बादो आदिवासी समाज में विकास के रफ़्तार बहुत धीमा रहल बिया| उत्तरपूर्वी के अलावां भारत में जतना भी आदिवासी लोग बाड़े ज्यादातर लोगन के आर्थिक स्तिथि ठीक नइखे, आजो बेरोजगार अउरी भूमिहीन बाड़े|
कर्ज के जहरीला चक्र में फसल बाड़े| बाजारवाद आदिवासी समाज के बुरी तरह से एह चक्र में फसा रहल बा| एगो छोट उदाहरन से समझल जा सकत बा| आज खेतीबारी खातिर जब गरीब आदिवासी बाजार में पेस्टिसाइड(फसल के दवाई) खातिर जात बा त दोकानदार ओही केमिकल के सलाह देत बा जवना प ओकरा ज्यादा मुनाफा होत बा| गलत निर्देश के वजह से फसल के उत्पादन में कमी आवत बा| परिणामस्वरूप उ कर्ज लौटावे में भी असमर्थ रहत बा आ जहरीला चक्र में फसे के मजबूर हो जात बा|
अईसन अउर भी बहुत सारा चीज बा जवना के आज तक हमनी के हल करे में असफल रहल बानी जा| ओह सब चीजन के बारे में चर्चा अगिला कड़ी में….
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